गायब हो रही है लोक कलायें,कहॉ गयी दादरा, ठुमरी, चैती, दादरा, होरी, और जाने कितनी चीजें, जिसको सुन लो मन खुश हो जाता हैं, जो कुछ जीवन में सीखा जाती है। कहॉ गयी कहॉ गये वह भजन गजल की शाम ,कहॉ गये? वह जिन को सुनकर हन लोग बडे हुये, बडा ही दुख का विषय हैं, कहॉ गये निराला, मैथली शरण की कवितायें, भाव विभोर करने वाली कलायें, कहॉ गये वह नकटा, जब महिलायें बारात जाने के बाद रात रातभर जग कर अभिनय करती थी और कुछ सीख ही देती थी। हम कहते है कि भारत आगे बड रहा है। नही हम कितने पीछे हो गये है।
हम लोक कलाकारो कैसे भूल जाते जो भेष बदल कर कभी नारद, तो कभी मौलाना बनते थे हमारा तो सीधा सा कहना है कि हम भूल गये भारत को उस रंग रंगीले कलाकारो को, हम भारतवासी तो कभी ऐसे नहीं थे। हमारा सीधा सा कहना है कि कला और लेखनी तो अनमोल हैं, किसी भी कलाकार को हमारी औकात ही नही है कुछ दे पाये । पर जिनका जीवन इसी पर चल रहा है उनको कुछ तो मिलना ही चाहिये वह तो उसका हक हैं अरे साहब चेहरा देखकर ना बुलाये उनको नवाजे जब उनकी काबिलियत हो। हमारी जो सखी है बनारस घराने की गिरजा देवी की चेली जिनसे बैठकर सीखा एकबार सुन लें ,वाह तबियत मंलग हो जाये ,Dr रमा जी का गायन आप के मुँह से वाह ही निकलेगा आह नहीं। पर नही हम को हिप, होप सुनना है जैज सुनना है वह बुरा नहीं पर विदेशी आते लोक कलाओ ,गायन को सुनने और हम भीड लगाकर पहँच जाते है सुनने। अपने देश की चीजो को हम कैसे भूल जाते है कितने लोग अपने बालक बलिकाओं को भारतीय संगीत सीखातें है। हम तो भाग रहे है दौड रहे बस पैसा कमाने के लिये भौतिक सुख के लिये पर जो अपनी विरासत है, उसको कैसे भूल जाते है। सरकार भी तो लापरवाह है जो हो रहा है होने दो घूस दो तब काम मिलेगा यह तो कोई बात नहीं है, जो अपनी रोजी रोटी के लिये खुद ही मर रहॉ है लगा हुआ है अपनी विरासत को बचाने में वह कैसे देगा और कहॉ से देखा आपको कुछ। चाहे कोई भी सरकार हो इन लोक कलाओं या कलाकारो पर कब नजरे इनायत करेगी फिर कह दूँ हम किसी भी राजनिति से नहीं जुडे है। हमारी लडाई तो हक के लिये है जो जिसका जायज हक हों दे ना कि काट छाँट कर। हो सकता है हमारी बात आप लोगो को बुरी लगी हो ,हमारा आशय किसी का दिल दुखाने का नहीं है अगर ऐसा हुआ है तो माफी चाहूगीं जागो इंडिया जागो इंडिया जागो।
नंदिता एंकाकी